Saturday, October 4, 2014

{ २९३ } ये ज़िन्दगी की पहेली





वो कब का जा चुकी
पर,
उसकी जुदाई के पहले का
एक नर्म सा लम्हा
मेरी मुट्ठी में
ज़िन्दगी की पहेली बन कर
ठहर गया है।

आज भी मैं
ज़िन्दगी की पहेली बने
इस लम्हे को दुलरा रहा हूँ,
जिससे तमाम उम्र
इस लम्हे को ही जीता रहूँ,
इस उम्मीद के साथ
कि,
कभी तो सुलझेगी
ये ज़िन्दगी की पहेली।
कभी तो हमजल्सा होगी
ये ज़िन्दगी की पहेली।।

------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल


हमजल्सा - मित्र, दोस्त

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