Wednesday, December 4, 2013

{ २८२ } पर अभी बाकी....






करुणा की गाथायें जीवन भर ओढ़ चुका
पर अभी बाकी अवसादों के ज्वार हैं।।

ऊँची बातों वाली यह थोथी-थोथी
खूब पढ़ी यह क्षण भँगुर जीवन-पोथी
साथी रहा न साथ, न पाथेय रहा
आहों ने अन्तर्दाहों को ही गहा।

सँबन्धो के मन-बन्धन सब तोड़ चुका
पर अभी बाकी अपवादों के खार हैं।।१।।

जीवन के दुख जैसे यौवना वैधव्य ढ़ोये
ग्यात किसको, कब कहाँ ये नयन रोये
बुझा चेहरा, गीली पलकें और सर्द आहें
देखकर पथरा गईं सुमनों की निगाहें।

चुभन के एहसासों वाले दिन जीवन में जोड़ चुका
पर अभी बाकी वादों-प्रतिवादों के आसार है।।२।।

क्या दिया, क्या लिया सब अनजान है
सम्मान की डोरी में पिरोया अपमान है
ढ़ह गया धीरज, दुखों ने किया अतिक्रमण
हुआ अतीत जब सुखों की नींद सोए थे नयन।

वीणा के तारों को छेड़-छेड़ तोड़ चुका
पर अभी बाकी खँजर के आघातों के वार हैं।।३।।

--------------------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल


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