Thursday, October 6, 2011

{ ५५ } साँसे महक उठी





खुश्बुओं ने है अपने पँख खोले, साँसें महक उठीं
गुलों ने ले ली है देखो अँगडाई, आँखें चहक उठी।

ये फ़कत कुछ कम नही, मोहब्बत के इस दौर में
हुआ मालामाल मैं हुस्न से, आशिकी बहक उठी।

सागर-सागर, लहरें-लहरें, गीत सजा कर लाया हूँ
माँझी उस सफ़ीने का, जिससे दरिया लहक उठी।

मैं भी पागल मस्ताना हूँ, जो दिन में जुगनूँ ढूँढूँ
दीवाना बन चमन सजाया, सब राहें महक उठीं।

हसरते लेकर मैं तेरी इस महफ़िल में आया हूँ
आओ, अब गले लगा लो, तबीयत बहक उठी।


............................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल

1 comment:

  1. Bandhu aap ki tabiyat to bahek gyi , lekin hume ta umr gum de diya ....aap ki tabiyat humesa durast rahe ..

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