Friday, July 15, 2011

{ ४६ } जरूरत है







रक्त में जमी हुई बर्फ़ को पिघलाने की जरूरत है,

चूर-चूर हुए हृदय को जरा सहलाने की जरूरत है।


कश्ती बह रही है दरिया मे मेरी पर है लक्ष्य-हीन,

आकर उसे थोडी सी दिशा दिखलाने की जरूरत है।


खता कुछ भी नही है पर फ़िर भी सजा पाई मैने,

आकर अब थोडा सा मुझे फ़ुसलाने की जरूरत है।


अँधियारी रात है और जंगल-बियाबान की राहे है,

अब कोई रोशनी का दिया दिखलाने की जरूरत है।


कर सकूं बाते चैन से और बेफ़िक्र होकर आप से,

बस थोडा सा आपको भी मुस्कुराने की जरूरत है।


आपसे दिल मिलेगा, बात बनेगी और रौनक रहेगी,

बस थोडा सा मेरे और करीब आ जाने की जरूरत है।


जाम पर जाम चलते ही रहे अब तो ऐसी ही शाम हो,

बस एक ऐसी रंगीन महफ़िल सजाने की जरूरत है।।



......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल



1 comment:

  1. कर सकूं बाते चैन से और बेफ़िक्र होकर आप से,
    बस थोडा सा आपको भी मुस्कुराने की जरूरत है।


    हम तो मुस्कुरा रहे हैं … अब चैन से बातें कीजिए :)

    गोपाल कृष्ण शुक्ल जी
    बहुत अच्छा लिखते हैं आप तो ! क्या बात है !

    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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