Friday, July 8, 2011

{ ४४ } जख्म








जिन्दगी में जख्म ऐसे-ऐसे दिल में हुआ करते है,

रिसते रहते है जख्म दिल फिर भी दुआ करते है |


गमों में घुटती साँसे, हरतरफ अँधेरा हवा बेरहम,

सब कुछ बदल गया, हम सिर्फ दर्द सहा करते हैं|


अपनी पलकों पर बैठाया है मैंने जिसको रात-दिन,

बेवजह मुझको अपनो में ही बदनाम किया करते है|


जिन्दगी ने दी तनहाई-रुसवाइयाँ बख्शीश में मुझे,

इस जहर-ए-जाम को हम हँस कर पिया करते है|


हर खुशी, तमन्ना मेरे गमे-दिल की पूरी हो न हो,

उजड़े हुए गुलिस्ताँ को महकने की दुआ करते है|


जज्बाए-इश्क, आरजूए-खुशी जीने की सदा देता है,

ऐ खुदा यह दुआ हो क़ुबूल हम यह ही दुआ करते है|



............................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल



2 comments:

  1. bahut sunder ,,,,aapki har kavita jaandar hai,,,,

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  2. हम आपकी और भी कविताएं पढना चाहतें है. शशीकांत अग्रवाल

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