बड़ी ही खूबसूरत हैं।
बिजलियाँ गिराती हैं,
बड़ा कहर ढ़ाती हैं,
समन्दर सी गहरी हैं,
जादू है, सम्मोहन हैं,
नदी की तरंग हैं,
उदात्त लहरी हैं,
बड़ी कातिल हैं,
बड़ी शातिर हैं,
गहरा नशा हैं,
छलकता जाम हैं,
लगाती मुझपे इल्जाम हैं,
गुमसुम सी रहती हैं
पर, बहुत कुछ कहती हैं,
मेरी उजली सुबह हैं,
मेरी नशीली शाम हैं,
देती है मेरे दिल को
एक प्यार भरा पैगाम है,
ये तुम्हारी आँखें।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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