Saturday, January 28, 2012

{ ७८ } झील से नयन तुम्हारे





झील से नयन तुम्हारे।
झील से नयन तुम्हारे।।

झील से नही हैं ये
प्रपात से नही हैं ये
सिंधु से नहीं हैं ये
ज्वार से नहीं हैं ये

झील से नयन तुम्हारे।
झील से नयन तुम्हारे।।

नदी से नही हैं ये
धार से नहीं हैं ये
कूल से नहीं हैं ये
ताल से नहीं हैं ये

झील से नयन तुम्हारे।
झील से नयन तुम्हारे।।

होता है अचरज इन पर
ये छलकें केवल मुझ पर
प्रेम-वेग के अश्रु भर कर
डूब गया मैं इनके तट पर

झील से नयन तुम्हारे।
झील से नयन तुम्हारे।।


.................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ ७७ } गति





ओ.... नदी !
न डालो बीच में भँवर
तुम्हारी गति और
यह धार ही काफ़ी है ।


ओ.... प्रियतम !
है संग तुम्हारा
न डालो पाल
यह पतवार ही काफ़ी है ।।


.................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


Monday, January 16, 2012

{ ७६ } रात-दिन





अरमान मेरे दिल में मचलते है रातदिन
आप के ख़्वाब दिल में पलते है रात-दिन|

प्यार की प्यास से लब तप रहे रेगबूम से
रस की बूँद की ख्वाहिश रखते है रात-दिन|

हिज्र-बेकरारी पर अब प्यार आने लगा है|
दिल को बस वस्ल की चाहते है रात-दिन|

हर तरफ बिखरी हैं यादें हमनवा सिर्फ तेरी
मैं यहाँ तुम वहाँ वक्त गुजारते हैं रात-दिन|

वस्ल की आरजू अपने दिल में ही लिये हुए
जिन्दगी सिर्फ आँसुओं से भरते है रात-दिन|



.......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


Wednesday, January 4, 2012

{ ७५ } फ़िर से...........





गहरे जख्मों में मरहम लगायें, दिल शाद करें फ़िर से
दिल से दिल को मिलायें, कायम एत्माद करें फ़िर से।

मुद्दत हुई अब ज़िन्दगी जीने का एहसास ही नही होता
चलो सुनहरे ख्वाबों की नई दुनिया आबाद करें फ़िर से।

अब अपने जी को बहलाने की यही है एक बेहतर सूरत
भूली-बिसरी हुई दिल-खुशकुन बातें, याद करें फ़िर से।

ख्वाबों में ख्वाब हों तुम्हारे और यादों में याद हो तुम्हारी
रूठी ऋतु से, फ़स्ले-गुल की चलो फ़रियाद करें फ़िर से।

ज़िन्दगी की तमाम राहों के तुम ही तो हो मेरे हमसफ़र
आ पहुँचे सरे-मंजिल, दौलते-दिल को याद करें फ़िर से।

बबूलों के इस जंगल को बनायें गुलशन, फ़ूल महकायें
अपने उजडे हुए चमन को, आओ आबाद करें फ़िर से।

चलो किसी गज़ल के बहाने एक बार फ़िर गुनगुनायें
वो बीते हुए लम्हे, वो गुजरे हुए पल, याद करें फ़िर से।


................................................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल



शाद= प्रसन्न
एत्माद=विश्वास
दिल-खुशकुन=चित्त को प्रसन्न करने वाली
फ़स्ले-गुल=बसन्त ऋतु
सरे-मंजिल=मुकाम
दौलते-दिल=दिल की खुशियाँ