हाले-दिल पूछकर, कर दिया आपने इलाजे-दिल,
जान कर इरादा आपका, मचल गया है मेरा दिल।
शाम ढले जोगन ने इन कानों मे मधुरस घोल दिया
मन-मंदिर बाँसुरि बाजे, देखो नाच रहा है मेरा दिल।
आते सर्दी-गर्मी, सावन-भादों, पतझड और बसन्त,
देख रंग-बिरंगे मौसम को मचल गया है मेरा दिल।
घनघोर घटा छाई सब ओर हरियाली ही हरियाली है,
बारिश करे अपने करतब, हिलोर गया है मेरा दिल।
जिसकी भीनी-भीनी खुश्बू से जानो-जिस्म महकते है,
ऐसा फ़ूल लिये फ़िरती हो, बेचैन हो रहा है मेरा दिल।
ये कैसी मस्त बहार लाये हो गुलशन मे मेरे ऐ बागबाँ,
रसभीनी मधुर मदन बयार मे मयूर सा नाचे मेरा दिल।।
.............................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल