मुस्कान अपने लबों पर बनाए रखिये
गम के आंसू दिल में ही दबाए रखिये|
रंजीदगी बढ़ कर मीनारों सी हो गई हो
लेकिन परदों में उनको छुपाए रखिये|
जमाने को दिखाओ हंसता हुआ चेहरा
गमज़दगी को दिल में ही दबाए रखिये|
गुस्ताखियाँ तो लोगों से होती ही रहेंगी
आप मुआफियों को पास बनाए रखिये|
दिल की हर बात कहना कोई जरूरी नहीं
अपने लबों पर खामोशी सजाए रखिये|
तनहा न रहोगे इस दुनिया में कभी भी
यार न सही, एक दुश्मन बनाए रखिये|
चाहे ज़माना हो जाए खिलाफ, होता रहे
आप अपने हौसले बुलंद बनाए रखिये|
तुख्म जमीं पर बिखेरो, चमन सजाओ
यूँ खुश्बुओं का सिलसिला बनाए रखिये|
मेरे अंदाज़ से वाकिफ होगे रफ्ता-रफ्ता
मेरी ग़ज़लों पर यूँ ही नजरें जमाए रखिये|
............................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
रंजीदगी=दुःख, गम
तुख्म=बीज
रफ्ता-रफ्ता=धीरे-धीरे