Friday, October 28, 2011

{ ५९ } मुस्कान बनाए रखिए






मुस्कान अपने लबों पर बनाए रखिये
गम के आंसू दिल में ही दबाए रखिये|

रंजीदगी बढ़ कर मीनारों सी हो गई हो
लेकिन परदों में उनको छुपाए रखिये|

जमाने को दिखाओ हंसता हुआ चेहरा
गमज़दगी को दिल में ही दबाए रखिये|

गुस्ताखियाँ तो लोगों से होती ही रहेंगी
आप मुआफियों को पास बनाए रखिये|

दिल की हर बात कहना कोई जरूरी नहीं
अपने लबों पर खामोशी सजाए रखिये|

तनहा न रहोगे इस दुनिया में कभी भी
यार न सही, एक दुश्मन बनाए रखिये|

चाहे ज़माना हो जाए खिलाफ, होता रहे
आप अपने हौसले बुलंद बनाए रखिये|

तुख्म जमीं पर बिखेरो, चमन सजाओ
यूँ खुश्बुओं का सिलसिला बनाए रखिये|

मेरे अंदाज़ से वाकिफ होगे रफ्ता-रफ्ता
मेरी ग़ज़लों पर यूँ ही नजरें जमाए रखिये|


............................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

रंजीदगी=दुःख, गम
तुख्म=बीज
रफ्ता-रफ्ता=धीरे-धीरे


Sunday, October 23, 2011

{ ५८ } .........जारी है





रेत के महलों में, उम्मीदों के संग मैंने जिन्दगी गुजारी है
उदास मंजर और आँसुओं का सिलसिला अब भी जारी है|

सवाल पर सवाल हैं और जवाब रिसते जखमों से हैं भरे
फ़िज़ा के भयानक शोर में, मेरी आवाज का डूबना जारी है|

नज़रों से मंजिल हुई ओझल, कदमों की रफ़्तार भी गुम
उदासी भरा चेहरा, नाम आँख, अश्कों का गिरना जारी है|

यादे भी सब वीरान हुईं, साथ मेरे कोई हमसाया भी नही
उलझी-बिखरी रातों में, बुझते हुए तारों का टूटना जारी है|

बड़ी उम्मीद और जातां से चमन में खुशबुओं को पिरोया
फूल खिल के महक भी न सका, टूट के बिखरना जारी है|

अब हमारी हर रात बहुत गमगीन और स्याह सी हो गयी
जुगनू-तारे भी थक चुके, पर आँसुओं का गिरना जारी है|

दिल में हरा तरफ छाए हुए हैं काले बादल गम और यास के
पर बुझती हुई शमा का अभी भी आँधियों से लड़ना जारी है|

किससे हारा, क्यों हूँ अपने ही घर में एक अजनबी की तरह
मुझमे कौन सी कमजर्फी है, सवालातों का घुमडना जारी है|

तमाम उम्र अपने दिल की आवाज को किताबों में लिखते रहे
वर्क अभी खाली हैं, जज्बातों की सियाही से सजाना जारी है|


..................................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


मंजर=दृश्य
फिजा=वातावरण
यास=निराशा
अफसाने=कहानियाँ
कमजर्फी=कमी, बुरी आदते, अनुदारता

Sunday, October 16, 2011

{ ५७ } तस्वीर का सहारा






अपने आँसुओं को रौ में कभी बहने न दिया है मैंने
दिल की बात खामोश लबों को कहने न दिया है मैंने|

जिंदगी की इस रहगुजर में कहीं तुम मिल ही जाओगे|
हर मुस्कुराते चहरे में तुमको ही तलाश किया है मैनें|

वो मंद-मंद मुस्कराहट, वो ज़रा सा छू लेने की चाहते
उन बीते पलों का अबतक बहुत इंतज़ार किया है मैंने|

तुमने तो दिल से जुदा कर भुला देने की कसम खाई है
तुम्हारी एक तस्वीर के सहारे जीस्त को जिया है मैंने|

मेरी ये ज़िंदगी जाने किस-किस दौर से गुजर चुकी है
पर आँखों में अश्क और होठों से मुस्कुरा दिया है मैंने|


................................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल




Friday, October 14, 2011

{ ५६ } वो नज़ारे कहाँ गए






ये कैसा बियाबान है वो नज़ारे कहाँ गए
वो गुलशन कहाँ हैं, वो सितारे कहाँ गए|

उड़ - उड़ के बैठ चुकी है गर्द भी राह की
दोस्तों के काफिलों के हरकारे कहाँ गए|

छाया हर तरफ अमावस का अँधियारा है
उजली चाँदनी रातों के सितारे कहाँ गए|

नजर नहीं आती अब कहीं यारों की सूरते
वो बातों, वो मुलाकातों के नज़ारे कहाँ गए|

वो चांदनी-सूरज, दिलों का प्यार नहीं रहा
शब्द केवल शेष हैं, अर्थ बेचारे कहाँ गए|


.......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


Thursday, October 6, 2011

{ ५५ } साँसे महक उठी





खुश्बुओं ने है अपने पँख खोले, साँसें महक उठीं
गुलों ने ले ली है देखो अँगडाई, आँखें चहक उठी।

ये फ़कत कुछ कम नही, मोहब्बत के इस दौर में
हुआ मालामाल मैं हुस्न से, आशिकी बहक उठी।

सागर-सागर, लहरें-लहरें, गीत सजा कर लाया हूँ
माँझी उस सफ़ीने का, जिससे दरिया लहक उठी।

मैं भी पागल मस्ताना हूँ, जो दिन में जुगनूँ ढूँढूँ
दीवाना बन चमन सजाया, सब राहें महक उठीं।

हसरते लेकर मैं तेरी इस महफ़िल में आया हूँ
आओ, अब गले लगा लो, तबीयत बहक उठी।


............................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, October 3, 2011

{ ५४ } आओ चलो दूर





आओ चलो दूर तेरे-मेरे सुर में सुर मिलाने कहीं
तेरे-मेरे गीत और गजलो-सुखन गुनगुनाने कहीं।

अब मुश्किल हमारा मिलना - जुलना हो गया है
संग -सग रहने के मिलते नहीं, नये बहाने कहीं।

चाक - दामन तो कर लिया हमने जुनूने-इश्क में
हमसे न होंगें इस दुनिया में इश्क के दीवाने कहीं।

सुलग रही है आग यकीनन, उठ रहा है जो धुआँ
क्या हकीकत के बिना कभी बनते अफ़साने कहीं।

कमबख्त इश्क में जख्म खाए, फ़िर भी हँस रहे
कुछ अश्क अभी बाकी, चलो उनको बिखराने कहीं।

मिल कर भी मुश्किल है इश्क का इजहार करना
चलो गजलों में ही इश्क की बातें गुनगुनाने कहीं।


............................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, October 1, 2011

{ ५३ } किस तरह जिया








आज को किस तरह से जिया हमने
रिश्तों में बस फासला किया हमने|

चिराग की लौ से परवाना जल गया
उफ़, सिर्फ अफसोस भर किया हमने|

गर चाही कुछ भी मदद कभी किसी ने
फ़ेरी नजर और किनारा किया हमने|

चाह कर भी हम नही हो सके किसी के
उम्र भर साथ का तमाशा किया हमने|

गुल नहीं किस्मत में कैसे चमन महके
दामन पर काँटे ही सजाया किया हमने|

मेहनत छोडी मुफलिसी में ही जीते रहे
और तकदीर को ही कोसा किया हमने|

इस जिन्दगी में क्या हासिल किया हमने
जिन्दगी को यूँ ही तो जाया किया हमने|


......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल