Monday, October 31, 2022
{३९७} मेरा परिचय क्या
Sunday, October 30, 2022
{३९६ } तुम्हारे इंतजार में
Saturday, October 29, 2022
{३९५ } ज़िन्दगी दर्द भी है खूबसूरत भी
Thursday, October 27, 2022
{३९४ } तुम पर है जाँ निसार
{३९३ } चाहत के हरफ़
Wednesday, October 26, 2022
{३९२} ज़िन्दगी का हिसाब
{३९१ } जहर के घूँट हँस-हँस के पिए हैं
Sunday, October 23, 2022
{३९० } खुशियों को कैसे मैं गम कहूँ
Friday, October 21, 2022
{३८९ } ये मेरी बज़्म नहीं
{३८८ } आँखों में बसा किसी का ख्वाब है
{३८७} हकीकत के फ़साने
Thursday, October 20, 2022
{३८६ } ज़िन्दगी की तलाश है
{३८५} ज़िन्दगी को खुल कर जिया कीजिए
{३८४ } कविता का जन्म
Wednesday, October 19, 2022
{३८३ } प्यार
{३८२} कविता
Tuesday, October 18, 2022
{३८१ } अम्मा
अम्मा,
Monday, October 17, 2022
{३८० } तुम्हारा वस्ल ही मरहम है
{३७९} दर्द कितना हो आह मत करना
{३७८} हाँ शायद कल
Sunday, October 16, 2022
{३७७ } ख़बर
{३७६ } हार या जीत
Saturday, October 15, 2022
{३७५ } कल का इंतजार
{३७४ } लफ़्ज़ लफ़्ज़ कराह रहा
{३७३} समय
Friday, October 14, 2022
{३७२ } नया जगमगाता स्वर्णिम सबेरा
{३७१ } अपनों को कभी मत भुलाओ
Thursday, October 13, 2022
{३७० } दुश्वारी ही दुश्वारी है
Tuesday, October 11, 2022
{३६९} तुम कविता हो
Monday, October 10, 2022
{३६८ } आजादी गीत
Sunday, October 9, 2022
{३६७ } हम न लड़खड़ाते हैं
Friday, October 7, 2022
{३६६ } दास्ताने-ग़म किसी को क्या सुनाऊँ
कितने पिये दर्द के आँसू क्या बताऊँ
दास्ताने-ग़म किसी को क्या सुनाऊँ।
रिश्तों के आईने में पड़ चुकी हैं दरारें
आईने से चेहरा अपना कैसे छुपाऊँ।
चारों तरफ से चल रही हैं तेज हवाऐं
इन आँधीयों के बीच दीप कैसे जलाऊँ।
आवारगी में ही कट गई मौसमें-बहार
पतझड़ों में दामन अपना कैसे बचाऊँ।
साजिशें सभी मेरे अपनों की ही तो थीं
इल्ज़ाम दुश्मनों पर भला कैसे लगाऊँ।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
{३६५ } क्या बताऊँ कि मैं कैसा हूँ
Thursday, October 6, 2022
{३६४ } दिये मोहब्बत के क्यों जला नहीं देते
Wednesday, October 5, 2022
{३६३ } मैं तलछट
मैं तलछट सा
निकाल कर
फेंक दिया गया हूँ,
किनारे पर
निर्विकार भाव से
अठखेलियाँ करती
लहरों को
मेरा सहलाना
किसी को भी
रास नहीं आया।
आखिर
तलछट को
यूँ तिरस्कृत कर
फेंक देना ही तो
उसका भाग्य है,
और मैं
भाग्य को
भोग रहा हूँ।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
Tuesday, October 4, 2022
{३६२ } जाने क्यों कँटीली हो गई डगर
Monday, October 3, 2022
{३६१} क्यूँ तू मुझसे नज़र मिलाता नहीं
Saturday, October 1, 2022
{३६०} मौन हूँ मैं
मौन हूँ मैं,
मौन रह कर ही
बता पाऊँगा दुनिया को
कि मेरे हृदय में भी
कुछ जज़्बात मचलते हैं,
दिल बल्लियों उछलता है,
चाहता मैं भी हूँ
कि प्यार की कलियाँ महकें,
भावनाओं के झरने झरें,
मेघ कि हर गरज पर
प्यार की बरसात हो,
चकाचौंध भरी इस दुनिया में
मेरी भी एक छोटी सी चाहत है
कि किसी हृदय रूपी प्रेम वीणा का
गुँजित तार बनूँ,
कोई मेरे भी हृदय की
मौन भाषा को समझे,
पर शायद अमावस की
काली रात सा ही
अन्धकारयुक्त है मेरा भाग्य,
इसीलिए भटकता हूँ
उस रोशनी के लिए
जिसका तारा अभी तक जन्मा ही नहीं।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल