Wednesday, January 15, 2014

{ २८४ } दो आँसू





हर प्रातः
संतान का स्वप्न
उदर में सँजोये
मेरी बाँझ आँखे
गर्भवती होती है,
पर,
बाहर गूँजती हुई
लज्जित करने वाली
दानवी आवाजों से डर
मेरा क्लीव मन
दिन पूरा होने से पूर्व ही
गर्भ को निर्ममता से
मार देता है
और फ़िर
शेष बचते है
वेदना पूरित
मेरी आकुल आँखों से
टपकते हुए
दो आँसू।।

----------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २८३ } आज का राम राज्य





आओ !
राजघाट के कब्रिस्तान से
उठकर आओ _____

और देखो
इन खण्डहरों में
तमाम दुश्वारियों की
भट्ठी में भुनकर
चिथड़ों मे लिपटे
औरत और मर्द,
बूढ़े, जवान और बच्चे
मूक होकर निहार रहे हैं
आकाश की थाली में पड़े
दुर्गन्धयुक्त चाँदनी के साथ
चाँद सी जली रोटियाँ ______

शायद
राम नाम का सत्य अब यही बचा है
और शायद आज का
राम राज्य भी यही है।।

---------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल