नफ़रतों की आग में मेरी मोहब्बते रख दी गयीं,
मेरे हिस्से में उदासियाँ ही उदासियाँ रख दी गयी।
अब गुमसुम सा बैठा हूँ, आँसू पलकों पर ठहरे है,
दिल से दूरी नही पर कुछ मजबूरियाँ रख दी गयी।
उसके ख्वाबों के बगैर अब राहें कटती नही दम भर
मंजिल की अजानी राहों पर ही दूरियाँ रख दी गयीं।
जाने क्यो उसने मेरे दिले-मासूम के साज को तोडा
सजी हुई महफ़िल में फ़िर खामोशियाँ रख दी गयी।
लाख हँस-बोल लें, दिल में आँसू हैं, गम है चेहरे पर,
दर्द के फ़ूलों से सजा करके, तनहाइयाँ रख दी गयी।
दिन की हकीकतें हैं क्या और रातों के ख्वाब हैं क्या,
मेरी उलझी हुई ज़िन्दगी मे, तारीकियाँ रख दी गयीं।
................................................................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल