Thursday, January 26, 2017

{३३४} हिसाब क्या करना






इन मोहब्बतों को सब पर यूँ ही निसार करना
मिली जो नफ़रतें उनका हिसाब क्या करना।

मेरे हिस्से में बस ये ही बेशुमार आँसू आए हैं
गमों के लगे इन ढ़ेरों का हिसाब क्या करना।

सारी मँजिलें बस ख्वाब ही बन कर रह गईं
गुजरे हुए इन रास्तों का हिसाब क्या करना।

जीस्ते-सफ़र ही तो अपने सफ़र की मँजिल है
दौराने सफ़र, दरारे राह का हिसाब क्या करना।

कितने हारे हुए हैं और कितना हैं जीत चुके
दिल की इन बाजियों का हिसाब क्या करना।


.......................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


१- जीस्ते-सफ़र = ज़िन्दगी की राह
२- दौराने-सफ़र = सफ़र के दौरान
३- दरारे-राह = राह के गढ्ढे