Thursday, May 12, 2016

{ ३२९ } मेरी अम्मा..... प्यारी अम्मा....





जीवन को नाम देती,
होठों को मुस्कान देती,
स्वप्नों को परवान देती,
हौसलों को उड़ान देती,
मेरे दर्द में जो कराह देती,
मेरे माथे पर छलछला आए पसीने को
अपने नरम आँचल से पोंछ देती,
फ़िर प्यार से सर पर हाथ फ़ेर देती,
अपनी ममता भरी छाँव मे ले कर
जो दुनिया के हर दुख से दूर कर देती,

....... ढ़ूँढ़्ता हूँ आज उस आँचल को
जिससे बिछड़ चुका हूँ वर्षों पूर्व............

पर उस आँचल का नरम अहसास
आज भी मुझे दुलरा जाता है,
लगता है कि जैसे तू यहीं कहीं है
 मेरे आस-पास.......................।

मेरी अम्मा.......... प्यारी अम्मा......॥

.............................. गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, May 6, 2016

{ ३२८ } मत बोलो ऊँचे बोल





बिक जाओगे यूँ ही माटी के मोल
मत बोलो मुख से इतने ऊँचे बोल।

बातें ही उठवाती हमसे तीर कमान
बदल के रख देती ये सारा भूगोल।

बातें ही मधु, बातें ही हैं बनती तोप
बातों में थोड़ी सी तू मिसरी घोल।

पहुँचे बातें बस उस की ही रब तक
भजन करे जो पर न पीटे वो ढ़ोल।

होएगी एक दिन करम की बारिश
यूँ ही तू बस उसकी ही जय बोल।


.......................................... गोपाल कॄष्ण शुक्ल