अँगना में हौले-हौले शाम चली आई।
भीनी-भीनी मनभावन खुशबू है छाई।।
इन्द्रधनुषी रँग सज गये तन-मन में
मस्त-मस्त पवन सँग डोले परछाई।
अँगना में हौले-हौले शाम चली आई।।
टप-टप बूँदे बरखा की गिरें मोरे अँगना
सोंधी-सोंधी महक मिट्टी की है मन भाई।
अँगना में हौले-हौले शाम चली आई।।
भीग गई मोरे तन की ओढनिया सारी
पर मन की प्यास अबहूँ न बुझ पाई।
अँगना मे हौले-हौले शाम चली आई।।
रँग-बिरँगे फ़ूल खिल उठे मोरे अँगना
कलियन का देख मन-मन हरसाई।
अँगना में हौले-हौले शाम चली आई।।
सुर-ताल में पिया मोरे सरगम गावें
मोरे सजना रस रागिनिया खूब सजाई।
अँगना में हौले-हौले शाम चली आई।।
........................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल
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