सूनी सी पगडँडी पर
एक आस अभी
साँसें ले रही है।
आँखों में निर्जीव आशा
बुझ-बुझ कर
जल रही है।
कोई तो आयेगा
इस राह पर___
देखे हैं चिन्ह मैंनें
जीवन के यहाँ पर___
पदचिन्ह कहो या
साँसों की
धीमी सी आहट।
इँतज़ार में पदचापों की
सरसराहट सुन रही है।
सूनी सी पगडँडी पर
ज़िन्दगी कुछ सुन रही है।
हाँ ! ज़िन्दगी कुछ सुन रही है।।
............................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
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