Thursday, May 31, 2012

{ १७६ } तन्हा जीवन





खामोशी ओढे हुये रात,
सूनी-सूनी पगडँडियाँ,
कोई हलचल नहीं,

जीवन में बसी खामोशी
मौत सी डरा रही है।

पर क्यों डरा रही है........?

उस रेतीले बँजर शहर से,
कँटीले झाड से,
जीवन को,

जो महसूस तो करता है
पर कह नही सकता
कि
मैं तन्हा हूँ।
मैं तन्हा हूँ।।


................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल


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