दूर, बहुत दूर पर कहीं
हमने अक्सर देखा।
अम्बर के
नीलाभ पटल पर
मटमैली धरती
अपना रंग घोलती।
ये दृष्य देख कर
मेरा मन हुलस उठा
मष्तिष्क में
प्रश्न कौंधा
कैसे पावन-बन्धन में
बाँध रही है
धरती और अम्बर को
यह क्षितिज रेखा।
दूर, बहुत दूर पर कहीं
हमने अक्सर देखा।।
..................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
शुभ संध्या
ReplyDeleteआपकी ये रचना बेहद पसंद आई
इसे मैं मेरी धरोहर में साझा कर रही हूूँ...
कृपया पधारें....
सादर..
http://4yashoda.blogspot.com/2018/09/blog-post_12.html
रचना कल गुरुवार को प्रकाशित होगी
ReplyDeletehttp://4yashoda.blogspot.com/2018/09/blog-post_13.html