मैं अकेला चलूँगा ऐ मेरे साये,
कोई नही वफ़ा को याद रख पाता है,
क्यो मेरे साथ-साथ तू चला आता है।
ओ नादाँ ! मेरी मंजिल है बेनिशाँ
ओ नादाँ ! तेरा - मेरा साथ कहाँ,
बस्तियाँ छूट गईं है दूर न जाने कहाँ
बाजारें छूट गईं हैं दूर न जाने कहाँ।
मँजिलें टिमटिमायें दूर, बहुत दूर
शमा झिलमिलाये दूर, बहुत दूर,
थक गये हैं पाँव, पड गये हैं छाले
न रुकेंगे अभी, हम ठहरे मतवाले।
मैं अकेला चलूँगा ऐ मेरे साये,
कोई नही वफ़ा को याद रख पाता है,
क्यो मेरे साथ-साथ तू चला आता है।।
............................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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