Tuesday, May 29, 2012

{ १७४ } मेरी नींदों को चुराया न करो





इस जहान में कुछ न भाये, ऐसे भाया न करो
चमकते जुगुनू सी, भडी भर को आया न करो।

देखा जब-जब तुमने अपनी कातिल नजरों से
दिल मचला, रूह फ़डकी, यूँ कहर ढाया न करो।

अब मैं लोगों से मिलता नहीं, न याराना ही रहा
मर जाऊँगा तो आओगे, वक्त को जाया न करो।

ये कैसा हादसा, मेरा दीवाना दिल हुआ जख्मी
मुन्तज़िर जवाब का, रगबत को छुपाया न करो।

जागती हुई आँखों में, अब ख्वाब सजा करते हैं
चाँदनी रातों में मेरी नींदों को यूँ चुराया न करो।

दिल टूटा तो मेरे वज़ूद के कोई मायने न रहेंगें
है तुमसे मोहब्बत, इसको यूँ ठुकराया न करो।

हूँ बहुत बे-करार, मिलने की आस कहाँ छूटेगी
आ गये तेरे मुकाम पर, मुझे यूँ पराया न करो।

मोहब्बत दिखाना मोहब्बत, छुपाना मोहब्बत
मैं तेरा दिलबस्त, मुझसे यूँ शरमाया न करो।


.................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


मुन्तज़िर = इन्तज़ार करना
रगबत = प्रेम
दिलबस्त = प्रेमी


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