जो मुझ पर बीती है
उसको मैं किसी से
न कह पाऊँगा।
जो दुख उठाये हैं
उनको मैं किसी से
न कह पाऊँगा।
जिन गुनाहो का बोझ
सीने में लिये फ़िरता हूँ
उनको कह देने की
हिम्मत मुझमे नही है,
बस किताबों में लिखी
दास्ताँ अपनी ढूँढता हूँ,
जहाँ-जहाँ लिखे हैं
किस्से मेरे अपने
उनको इन चिरागों की
रोशनी में पढता हूँ,
जानता हूँ मैं कि
जब भी कोई इसको पढ लेगा
वो जरूर मुझसे नफ़रत कर लेगा।
पर, फ़िर भी,
जो मुझ पर बीती है
उसको मैं किसी से
न कह पाऊँगा।
जो दुख उठाये हैं
उनको मैं किसी से
न कह पाऊँगा।।
............................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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