ऐ तन्हाई !
बहुत हसीन है तू।
जब भी गुजरती हूँ
यादों की गलियों से
तो लगता है कि
जेहन के बँद दरवाजों पर
यादों का कोई काफ़िला
धीमे-धीमे रेंग रहा है,
उस पल,
फ़िर से
जिन्दा हो कर
यही सदा देती हूँ,
ऐ तन्हाई !
बहुत हसीन है तू।।
............................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
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