Tuesday, December 27, 2011
{ ७४ } आदमी हूँ
Sunday, December 11, 2011
{ ७३ } गमों का पर्वत ले लिया हमने.....
Saturday, December 3, 2011
{ ७२ } बेनाम आँसू
Wednesday, November 23, 2011
{ ७१ } वस्ल-ओ-मोहब्बत
Tuesday, November 22, 2011
{ ७० } अपनी हस्ती = काँटे उलझन
Thursday, November 17, 2011
{ ६९ } वो आब आता नही
Wednesday, November 16, 2011
{ ६८ } मस्त फ़िज़ा
Tuesday, November 15, 2011
{ ६७ } पीने के सबब - ३
Thursday, November 10, 2011
{ ६६ } क्या करूँ
Wednesday, November 9, 2011
{ ६५ } अन्तिम पिपास
Tuesday, November 8, 2011
{ ६४ } तनहाई है मन भी उनमन है
Monday, November 7, 2011
{ ६३ } ज़िन्दगी तेरी तलाश
Sunday, November 6, 2011
{ ६२ } फिर भी दिल तो है पागल-दीवाना
{ ६१ } सूनी रहगुज़र
Tuesday, November 1, 2011
{ ६० } ग़मों से यारी हो गई
Friday, October 28, 2011
{ ५९ } मुस्कान बनाए रखिए
Sunday, October 23, 2011
{ ५८ } .........जारी है
Sunday, October 16, 2011
{ ५७ } तस्वीर का सहारा
Friday, October 14, 2011
{ ५६ } वो नज़ारे कहाँ गए
Thursday, October 6, 2011
{ ५५ } साँसे महक उठी
खुश्बुओं ने है अपने पँख खोले, साँसें महक उठीं
गुलों ने ले ली है देखो अँगडाई, आँखें चहक उठी।
ये फ़कत कुछ कम नही, मोहब्बत के इस दौर में
हुआ मालामाल मैं हुस्न से, आशिकी बहक उठी।
सागर-सागर, लहरें-लहरें, गीत सजा कर लाया हूँ
माँझी उस सफ़ीने का, जिससे दरिया लहक उठी।
मैं भी पागल मस्ताना हूँ, जो दिन में जुगनूँ ढूँढूँ
दीवाना बन चमन सजाया, सब राहें महक उठीं।
हसरते लेकर मैं तेरी इस महफ़िल में आया हूँ
आओ, अब गले लगा लो, तबीयत बहक उठी।
............................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल
Monday, October 3, 2011
{ ५४ } आओ चलो दूर
Saturday, October 1, 2011
{ ५३ } किस तरह जिया
Friday, September 30, 2011
{ ५२ } जीना आ गया
Friday, September 23, 2011
{ ५१ } तमन्ना
Monday, September 19, 2011
{ ५०} मै साथ हूँ
चाहत के हर मुकाम पर मैं साथ हूँ
हो गैरों की ही भीड पर मै साथ हूँ।
पलकों पर तो सजाया है तुमने मुझे
आँखों मे रोशनी की तरह मै साथ हूँ।
उल्फ़त में कुर्बान हो जाए मेरी दुनिया
पर हर अंजामे-मोहब्बत मे मै साथ हूँ।
मंजिल हम अपनी एक दिन पा जायेंगे
हमसफ़र राह पर चला चल, मैं साथ हूँ।
किस्मत हो मेहरबान या कि दगा दे जाये
पर हर तूफ़ाँ में साहिल तक, मै साथ हूँ।
............................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
Wednesday, September 14, 2011
{ ४९ } प्यार अब और किसी का है
Saturday, September 10, 2011
{ ४८ } मुकद्दर
किसी को ताज मिलता है तो किसी को मौत मिलती है
देखना है प्यार में मेरा मुकद्दर मुझको क्या दिलाती है|
अब भी उस हसीन जिन्दगी को आइना दे सकता हूँ मैं
पर वो तो मुझ पर सिर्फ तोहमत कि बरसात कराती है|
होठों में गज़ल, सलोने सपने आँखों में उसकी भर दूँ मै
पर न जाने क्यों वो इन चांदनी रातों को अँधेरी बनाती है|
सनम के संगेदिल में सुर्ख फूल मैं एक खिलाना चाहता हूँ
करिश्मा इश्क का इधर है, वो मोहब्बत उसे कहाँ लुभाती है|
मेरा दिल जो खँडहर सा उजडा पड़ा है आ कर संवार दो उसे
जानता हूँ जब भी तुम आती हो, जन्नत खुद से शरमाती है|
................................................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल
Tuesday, July 19, 2011
{ ४७ } बेचारों से हम
कब तक चुप रहेंगे बेचारों से हम,
त्रस्त कब तक रहेंगे अजारों से हम|
आग जंगल की तरफ़ अब बढ रही,
दूर कब तक रहेंगे अँगारों से हम।
दर्द से बोझिल हो गई अब ज़िन्दगी,
प्यार कब तक करेंगे गुबारों से हम।
गिर रही बिजलियाँ आशियाँ जल रहे,
छुपते कब तक रहेगे मक्कारों से हम|
तेज है सैलाब और दरके हुए बाँध है,
और कब तक थमेंगे कगारों से हम।
दोस्ती है गिध्द से जो नोचती ज़िन्दगी,
और कब तक दबेंगे अत्याचारों से हम।
................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
(अजार = रोग)
Friday, July 15, 2011
{ ४६ } जरूरत है
रक्त में जमी हुई बर्फ़ को पिघलाने की जरूरत है,
चूर-चूर हुए हृदय को जरा सहलाने की जरूरत है।
कश्ती बह रही है दरिया मे मेरी पर है लक्ष्य-हीन,
आकर उसे थोडी सी दिशा दिखलाने की जरूरत है।
खता कुछ भी नही है पर फ़िर भी सजा पाई मैने,
आकर अब थोडा सा मुझे फ़ुसलाने की जरूरत है।
अँधियारी रात है और जंगल-बियाबान की राहे है,
अब कोई रोशनी का दिया दिखलाने की जरूरत है।
कर सकूं बाते चैन से और बेफ़िक्र होकर आप से,
बस थोडा सा आपको भी मुस्कुराने की जरूरत है।
आपसे दिल मिलेगा, बात बनेगी और रौनक रहेगी,
बस थोडा सा मेरे और करीब आ जाने की जरूरत है।
जाम पर जाम चलते ही रहे अब तो ऐसी ही शाम हो,
बस एक ऐसी रंगीन महफ़िल सजाने की जरूरत है।।
......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल