Saturday, September 10, 2011

{ ४८ } मुकद्दर







किसी को ताज मिलता है तो किसी को मौत मिलती है

देखना है प्यार में मेरा मुकद्दर मुझको क्या दिलाती है|


अब भी उस हसीन जिन्दगी को आइना दे सकता हूँ मैं

पर वो तो मुझ पर सिर्फ तोहमत कि बरसात कराती है|


होठों में गज़ल, सलोने सपने आँखों में उसकी भर दूँ मै

पर न जाने क्यों वो इन चांदनी रातों को अँधेरी बनाती है|


सनम के संगेदिल में सुर्ख फूल मैं एक खिलाना चाहता हूँ

करिश्मा इश्क का इधर है, वो मोहब्बत उसे कहाँ लुभाती है|


मेरा दिल जो खँडहर सा उजडा पड़ा है आ कर संवार दो उसे

जानता हूँ जब भी तुम आती हो, जन्नत खुद से शरमाती है|




................................................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल




1 comment:

  1. मेरा मुकद्दर मुझको क्या दिलाती है...

    बढ़िया अशआर भईया...
    सादर बधाई...

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