Friday, September 23, 2011

{ ५१ } तमन्ना





कुछ तो हो अब ऐसा कि जीने की चाह निकले
कहीं से तो बेपनाह मोहब्बत की राह निकले|

इतना बड़ी है कायनात, इतना बड़ा है ज़माना
शिकस्ता-दिलों का कोई तो खैरख्वाह निकले|

आते जो करीब फिर बदल जाती निगाह उनकी
अब कोई तो हो ऐसा जो मोहब्बतख्वाह निकले|

वो बुरा कहता है मुझे, इसका कोई गम नहीं हमे
मनाता हूँ उसकी बददुआ सिर्फ अफवाह निकले|

मजनू को तो अपनी मंजिले-मकसूद मिल ही गई
उसकी बला से लैलाओं के जनाजे तबाह निकले|

गर्दो-गुबार कितना छाया हुआ है इस जिन्दगी में
साथ है तमाम हमराह कोई तो दिलख्वाह निकले।

हैं ये दर्दो-गम के किस्से ये आवारगी के आलम
चले ठंडी हवा के झोंके और दिल से आह निकले|



..................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल



1 comment:

  1. इतनी बड़ी है कायनात, इतना बड़ा है ज़माना
    शिकस्ता दिलों का कोई तो खैरख्वाह निकले....

    वाह! भईया... उम्दा अशआर.... सुन्दर ग़ज़ल...
    सादर....

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