हर लमहा है आँसुओं की बरसात, क्या करूँ
होठ सिले हुए पर मुँह में है बात, क्या करूँ।
हमें तो महसूस होती है तेरे दिल की धडकन
तुम भी तो समझो मेरे ज़ज्बात, क्या करूँ।
अक्स तुम्हारा ही घूमता नजरों के सामने
कब होगी मेरी तुमसे मुलाकात, क्या करूँ।
नजदीक आते हो पर चन्द समय के लिये
रुको मेरे पास, हों ऐसे हालात, क्या करूँ।
खो चुका हूँ मैं अपना सब चैन और आराम
दिल में सिर्फ़ तुम्हारे खयालात, क्या करूँ।
तुम्हारे भी हाल क्या है, जानता अकेला मैं
बाकी अपने दुश्मनों की जमात, क्या करूँ।
देखा जब से तुम्हे रातों को नीद आती नही
आगे बीते चैन से हमारी हयात, क्या करूँ।
........................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
वाह! बेहतरीन
ReplyDeleteसादर....