रेत के महलों में, उम्मीदों के संग मैंने जिन्दगी गुजारी है
उदास मंजर और आँसुओं का सिलसिला अब भी जारी है|
सवाल पर सवाल हैं और जवाब रिसते जखमों से हैं भरे
फ़िज़ा के भयानक शोर में, मेरी आवाज का डूबना जारी है|
नज़रों से मंजिल हुई ओझल, कदमों की रफ़्तार भी गुम
उदासी भरा चेहरा, नाम आँख, अश्कों का गिरना जारी है|
यादे भी सब वीरान हुईं, साथ मेरे कोई हमसाया भी नही
उलझी-बिखरी रातों में, बुझते हुए तारों का टूटना जारी है|
बड़ी उम्मीद और जातां से चमन में खुशबुओं को पिरोया
फूल खिल के महक भी न सका, टूट के बिखरना जारी है|
अब हमारी हर रात बहुत गमगीन और स्याह सी हो गयी
जुगनू-तारे भी थक चुके, पर आँसुओं का गिरना जारी है|
दिल में हरा तरफ छाए हुए हैं काले बादल गम और यास के
पर बुझती हुई शमा का अभी भी आँधियों से लड़ना जारी है|
किससे हारा, क्यों हूँ अपने ही घर में एक अजनबी की तरह
मुझमे कौन सी कमजर्फी है, सवालातों का घुमडना जारी है|
तमाम उम्र अपने दिल की आवाज को किताबों में लिखते रहे
वर्क अभी खाली हैं, जज्बातों की सियाही से सजाना जारी है|
..................................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
मंजर=दृश्य
फिजा=वातावरण
यास=निराशा
अफसाने=कहानियाँ
कमजर्फी=कमी, बुरी आदते, अनुदारता
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