आज को किस तरह से जिया हमने
रिश्तों में बस फासला किया हमने|
चिराग की लौ से परवाना जल गया
उफ़, सिर्फ अफसोस भर किया हमने|
गर चाही कुछ भी मदद कभी किसी ने
फ़ेरी नजर और किनारा किया हमने|
चाह कर भी हम नही हो सके किसी के
उम्र भर साथ का तमाशा किया हमने|
गुल नहीं किस्मत में कैसे चमन महके
दामन पर काँटे ही सजाया किया हमने|
मेहनत छोडी मुफलिसी में ही जीते रहे
और तकदीर को ही कोसा किया हमने|
इस जिन्दगी में क्या हासिल किया हमने
जिन्दगी को यूँ ही तो जाया किया हमने|
......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
उफ़! सिर्फ अफ़सोस भर किया हमने....
ReplyDeleteकितनी गहरी बात...
जानदार अशआर गोपाल भईया...
सादर...
Wah Gopal Ji, Hamesha ki tarah hi shandar.
ReplyDeleteकोई चाहने वाला होता
टूट गया सूरज दीपों में
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