आओ चलो दूर तेरे-मेरे सुर में सुर मिलाने कहीं
तेरे-मेरे गीत और गजलो-सुखन गुनगुनाने कहीं।
अब मुश्किल हमारा मिलना - जुलना हो गया है
संग -सग रहने के मिलते नहीं, नये बहाने कहीं।
चाक - दामन तो कर लिया हमने जुनूने-इश्क में
हमसे न होंगें इस दुनिया में इश्क के दीवाने कहीं।
सुलग रही है आग यकीनन, उठ रहा है जो धुआँ
क्या हकीकत के बिना कभी बनते अफ़साने कहीं।
कमबख्त इश्क में जख्म खाए, फ़िर भी हँस रहे
कुछ अश्क अभी बाकी, चलो उनको बिखराने कहीं।
मिल कर भी मुश्किल है इश्क का इजहार करना
चलो गजलों में ही इश्क की बातें गुनगुनाने कहीं।
............................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल
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