तनहाई है मन भी उनमन है
जाने कैसी ये शाम हो गई।
आ जाओ, अब आ भी जाओ
देखो अब तो पूरी शाम हो गई॥
तनहाई है मन भी उनमन है.......
नयनों में आँसू तिरते हैं
होठों पर खामोशी छाई
धीरे-धीरे पीर बढ रही
उस पर बेदर्द शाम हो गई॥
तनहाई है मन भी उनमन है.......
झूठे वादे है झूठी कसमें हैं
बहलाने की हर कोशिश
उम्मीदें छूटी, रोता दिन बीता
फ़िर से काली शाम हो गई॥
तनहाई है मन भी उनमन है.......
आँखों में तैरे सपन तुम्हारे
कानों में गूँजे आहट तेरी
पिया मिलन की चाह अधूरी
आँसू से भीगी शाम हो गई॥
तनहाई है मन भी उनमन है.......
उदास ज़िन्दगी आग सीने में भरे
सजीले स्वप्न सब हकीकत से परे
यह तनहाई ही अब मेरा साथी है
फ़िर खामोशी वाली शाम हो गई॥
तनहाई है मन भी उनमन है.......
आस छूटी, मन का विश्वास छूटा
बेरुखी से यह दिले-मासूम टूटा
लुट चुकी सब प्यार की दौलत
फ़िर रोती-बिलखती शाम हो गई॥
तनहाई है मन भी उनमन है
जाने कैसी ये शाम हो गई॥
............................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
No comments:
Post a Comment