ज़िन्दगी में अगर गम न हों तो ज़िन्दगी नही
आँसुओं से आँखें नम न हों तो ज़िन्दगी नहीं।
ज़िन्दगी की इस रहगुजर में दोनो रंग जरूरी हैं
पर कोशिशों का मरहम न हो तो ज़िन्दगी नही।
काँटे और उलझन अपनी हस्ती और किस्मत हैं
गर्दिश को बदलने का दम न हो तो ज़िन्दगी नहीं।
रखता रहा हूँ कहकहों में छुपाकर अपनी उदासियाँ
गर साथ हमदम का भरम न हो तो ज़िन्दगी नही।
मानता हूँ दुनिया है फ़ानी चार दिन की ज़िन्दगानी
ज़ीस्त की गज़ल सा ज़रम न हो तो ज़िन्दगी नही।
..................................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
ज़रम=इलाज
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