Saturday, December 3, 2011

{ ७२ } बेनाम आँसू






जब से गये हो तुम जीना भी दुश्वार हो गया
हर एक लम्हा ज़िन्दगी का नागवार हो गया।

उन ख्वाबों को अपनी आँखों से कैसे जुदा करे
जो ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सेदार हो गया।

ख्वाब अक्सर ज़िन्दगी का जंजाल हुआ करते
कुछ सच्चे ख्वाबों का अहम किरदार हो गया।

संगदिल जिस्मों के बंजर देख आँसू हुए बेनाम
दिलजोई अब नही रही इश्क भी लाचार हो गया।

हमने जिसको प्यार से सींचावो हुआ जहरीला
संवारे संवरता नही, इश्क तन्हा मीनार हो गया।


.......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


दिलजोई=संवेदना


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