मैं,
उस नगर का बाशिन्दा हूँ,
जिस नगर में हर ऋतु के
काले-काले डरावने से साये
जनता के जीवन का
रस चूस रहे हैं,
और
मूर्ख भोली-भाली जनता
कुछ भी न समझते हुए
कुछ भी न जानते हुए
उन काले-काले
डरावने सायों के सामने
झुक जाती है,
लुट जाती है,
और
मन मसोस कर
अपना सब कुछ
सिसक-सिसक कर दे देती है।।
............................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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