यह पानी की बूँद है।
यह पानी की छोटी सी बूँद है।।
जब-जब नदिया बूँद-बूँद को तरसे
तब-तब बादल गरज-गरज बरसे
बूँदें झरती-गिरती-मिलती नदिया से
नदिया बहती-बहती मिलती सागर से।
कितना अदभुत आलिंगन है
बूँदों, नदिया और सागर का,
कितना मोहक अगाध-मिलन है
बूँदों, नदिया और सागर का।
बूँद से बूँद मिल-मिल कर
नदिया-सागर का पानी होता
पानी से पानी मिल पानी होता।
पानी से पानी में गाँठ नही पडती
पानी की बूँद पानी से जा जुडती।
यह पानी की बूँद है।
यह पानी की छोटी सी बूँद है।।
................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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