Friday, March 9, 2012

{ ११० } तनहाइयों में हम






पहुँच सके कभी नहीं प्यार की ऊँचाइयों में हम
महफ़िल से उजडकर आ गये तनहाइयों में हम।

देखा है जब से आपको, मुझे खुद की खबर नही
शामिल हैं न जाने कब से आपके शैदाइयों में हम।

हम कभी उनके इश्क से न बाज आ पायेंगे यारों
गिने जायें दीवानों या कि दिलफ़िगारियों में हम।

मगर इश्क की शोहरत से जल्द ही निजात मिले
जिससे डूब जायें तेरे बहर-ए-खुशनुमाइयों में हम।

मैं सोचता रहता हूँ पर याद कुछ भी आता ही नही
किस कदर डूबे हैं तेरे ख्वाब की परछाइयों में हम।

सच तो यह है यारों कि अगर चोट न खाता ये दिल
न सुख होता, न डूबते इश्क की गहराइयों मे हम।

उफ़ नाजनीन की महफ़िल से खाली हाथ उठूँ कैसे
जाओ यारों रह लेगे इन तमाम तनहाइयों में हम।


...................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


शैदाई = प्रेमी
दिलफ़िगार = जख्मी दिल
बहर-ए-खुशनुमा = हुस्न का समुद्र


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