जागो ओ ! भारत के तरुण कर्णधार
जागो जागो भारत के तरुण कर्णधार।।
अंतर-मन की ज्वालाओं को ठंडी कर
कब से ज्योतित प्रतिमाओं को रौंद रहे
मिथ्या की कारा में कर कैद सत्य-जीवन
विपदाओं की वक्र-दृष्टि को बस कोस रहे।।
कब तक ये परंपरायें शोषण की पनपने दोगे
कब तक यूँ ही मानवता को कटने-मरने दोगे
कंकाल समय का डरा रहा सम्मुख आ कर
नजरों से कब तक उसको यूँ ही बचने दोगे।।
हो चुके अब बहुत मनमानी-आन्तकी मेले-जलसे
अब सही वक्त है डाल कफ़न उनको दफ़नाने का
यदि शान्ति चाहते हो तुम लाना अपने भारत में
यही समय है सोयी क्रान्ति ज्वाला को धधकाने का।।
जागो ओ ! भारत के तरुण कर्णधार
जागो जागो भारत के तरुण कर्णधार।।
.................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
!! बहुत अच्छी रचना है गोपाल जी इस रचना से मै बहुत प्रभावित हुआ हु !! अब समय आ गया है जागने का देश के लिए कुछ करने का !!
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