मेरे छुई - मुई से कोमल भावों को,
प्रिय छेडो मत चंचल चितवन से।
तृप्ति मिला करती केवल इनको,
अनुपम सुन्दर छवि के दर्शन से।
अनुराग रहित ये हरदम रहे सदृश,
खिल न सकेंगे केवल झूटे गुंजन से।
ये रहे वासना से सदा ही अपरिचित,
रुको ! कुम्हला जांयेंगे आलिंगन से।
अगर बाँध सको तो बाँधों इन्हे तुम,
अपने प्यार से भरे मन-बन्धन से।
.......................... ................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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