अब तो गुजर जाये चाहे जहाँ ज़िन्दगी।
हमने तुमसे कहा, तुमने उससे कह दिया,
कहते और सुनते हो गई दास्ताँ ज़िन्दगी।
मौरूसी मे तुमको खन्जर ही खंजर मिले,
हमको मिली है देखो ये बे-जुबाँ जिन्दगी।
देखो, पल भर में ही ये कैसे हो गई यारों,
किसी बुलबुले की तरह बे-निशाँ ज़िन्दगी।
जुस्तज़ू करते-करते अब थक सा गया हूँ मै,
इस जहाँ मे खो गयी है जाने कहाँ ज़िन्दगी।
……………………........…… गोपाल कृष्ण शुक्ल
१- मौरूसी = विरासत
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