ज़िन्दगी कट रही चरण चरण।
सच को भी वो सच कहते नहीं
आचरण पे पड़ा हुआ आवरण।
मोह किससे अब कहाँ तक रहे
बँध न पाते अब नयन से नयन।
सत्य, सत्य को ही न पहचानता
हो गया है यह कैसा वातावरण।
भटकते हुए बीत रही उम्र सारी
मिली न कहीं आशा की किरण।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
No comments:
Post a Comment