Monday, November 7, 2022

{४०३} तेरे ही इंतज़ार सी हुई ज़िन्दगी





रूठी रूठी बहार सी हुई ज़िन्दगी 
टूटी टूटी पतवार सी हुई ज़िन्दगी। 

न रोशनी है न जलता  हुआ चराग 
उजड़ी टूटी मजार सी हुई ज़िंदगी। 

न मँजिल, कारवाँ न  हमराही कोई 
उड़ते  हुए  गुबार सी  हुई ज़िन्दगी। 

जब  से  जुदा  हुए हम - आप सनम 
फुरकत मे गुनहगार सी हुई ज़िंदगी। 

हम रब से क्या माँगें खुद अपने लिये 
एक तेरे ही  इंतज़ार सी हुई ज़िन्दगी। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 


फ़ुरकत = वियोग 

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