टूटी टूटी पतवार सी हुई ज़िन्दगी।
न रोशनी है न जलता हुआ चराग
उजड़ी टूटी मजार सी हुई ज़िंदगी।
न मँजिल, कारवाँ न हमराही कोई
उड़ते हुए गुबार सी हुई ज़िन्दगी।
जब से जुदा हुए हम - आप सनम
फुरकत मे गुनहगार सी हुई ज़िंदगी।
हम रब से क्या माँगें खुद अपने लिये
एक तेरे ही इंतज़ार सी हुई ज़िन्दगी।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
फ़ुरकत = वियोग
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