अंजाम हुआ क्या, बर्बाद मोहब्बत का
क्यूँ कत्ल हुआ यारों, पाक मोहब्बत का।
हम जाते हैं महफ़िल से टूटा दिल लेकर
इंसाफ खुदा देगा, अब मेरी मोहब्बत का।
वो नेह के बंधन थे, तुम तोड़ गए जिनको
कमजोर बड़ा निकला, धागा मोहब्बत का।
रोते हैं चमकते सितारे और रोती रातें भी
देखो चाँद भी रोता है, अपनी मोहब्बत का।
चाहे तुम मुझे यूँ ही बेअदब ही कहते रहो
अब न छूटेगा मेरा ये रास्ता मोहब्बत का।
............ गोपाल कृष्ण शुक्ल
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