Thursday, September 22, 2022

{३५५ } हम चमन-चमन इश्क बोते हैं





हम चमन-चमन इश्क बोते हैं 
फिर उन्हे आँसुओं से भिगोते है। 

गगन को सजाता हूँ मोहब्बत से 
फूल, सूरज, चाँद-चाँदनी होते हैं। 

मौसमों के रुख बदलने के लिए 
हम परवाज़ पर तूफान ढ़ोते हैं। 

सूरज की तपिश से पड़ी खरोंचें 
हम उसको शबनम से ही धोते हैं। 

हाथों की लकीरें हम खुद बनाते 
वो और होंगे जो किस्मत पे रोते हैं। 

..  गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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