तनहाई में
जब कभी
अपने ख्वाबों में
तुमसे मिलता हूँ________
सच बताऊँ प्रियतम
तुम्हे हृदय की
प्रत्येक उमंगों में
प्रतिबिम्बित करता हूँ_________
मानस-दर्पण में
प्रीति-पुष्प के
सुगँधित पराग को
रचता हूँ___________
मानस-पटल पर
कौंधते बार-बार
चन्द्र-सम आकर्षण को
चूमने को आतुर
ओष्ठ____________
प्रेमातुर हृदय के
स्पंदन में
वीणा की ध्वनि और
कोमल कँठ-स्वर का
अभिनन्दन करता हूँ________
तनहाई में
जब कभी
अपने ख्वाबों में
तुमसे मिलता हूँ___________
------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
bahut sunder kya gazab likha hain aapne
ReplyDeleteमानस दर्पण में
ReplyDeleteप्रीति पुष्प के
सुंगधित पराग को
रचता हूँ
बेहद मोहक पंक्तियाँ