उसने अपने घर के
वातायन पर
अपनी कोहनी को
टिका कर
अपनी सुकोमल
हथेलियों को हिलाते हुए
गुलाब की पाँखुरी जैसे
मादक नयनों से
मेरी तरफ़
प्रेम भरी दृष्टि से देखा
और कहा_________
आओ ! आओ !! चले आओ !!!
मैने कहा,
ओ ! मधुयामिनी,
तुम निर्झर झरने सी
स्वच्छ और पावन
और मैं,
एक यायावर________
कितना बेमेल है ये संगम....
उसने अपनी
सुकुमार ग्रीवा को
हिलाकर कहा......
अरे पगले !
सब तो
तुम पर अर्पण कर दिया
मधुर-मधुर
मदिर-मदिर_________
मैं अवाक,
अपलक, निशब्द हो
उसे देखता ही रह गया।।
----------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
BAHUT SUNDER KYA BAAT HAIN ACHARYA SHREE
ReplyDelete