हम हैं मस्ताना-ए-इश्क, हममें न होशियारी है
आजाद परिन्दे हैं हम, दुनिया से हमें न यारी है।
जो बिछड गये अपने प्यार से वो दर-दर भटकते
हमारा यार हमारे दिल में है, हम को न बेजारी है।
पल भर को भी न बिछुडेंगें अपने दिलबर से हम
उनको भी इश्क हम से, अब कोई न दुश्वारी है।
इश्क में गहरे डूब चुके, इश्क में ही डूबे रहेंगें
इस दुनिया में हमें किसी से न दुश्मनी यारी है।
ये संग-ए-मील-ओ-इश्क मुझे दिखाते हैं रास्ता
इस दुनिया-ए-फ़ानी में इश्क कहीं न बेशुमारी है।
..................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
मस्ताना-ए-इश्क = इश्क मे डूबे हुए
बेजार = बीमार
संग-ए-मील-ओ-इश्क = इश्क के रास्ते के मील के पत्थर
दुनिया-ए-फ़ानी = समाप्त होने वाली दुनिया
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