Monday, April 2, 2012

{ १२६ ] मुँसिफ़ हो अगर तुम





यह जरूरी नही उसको भी मेरा कुछ खयाल हो
जो हो गया मेरा हाल, वही उसका भी हाल हो।

किसी का फ़लक कोसने से तो कोई फ़ायदा नही
नुक्स हो अपना और अपनी खराब उछाल हो।

न कोई बात-तजकिरा, कैसे दिल की खबर मिले
आपस की दरयाफ़्तगी, कुछ जवाब-सवाल हो।

ढली रौनके-शाम, मयकदे मे ही गम निकलते हैं
ऐसे बीतें जब रोजो-शब तो कैसे जीना मुहाल हो।

आस कब दिल को न थी उसके वापस आने की
कोई दिन ऐसा नही जब दिल उनसे बेखयाल हो।

मुँसिफ़ हो अगर तुम तो कब मेरा इंसाफ़ करोगे
मुजरिम अगर हम हैं तो क्यों सजा से बहाल हो।

मेरी बरबादियों में कुछ तो उसका भी हाथ रहा है
आज हालात कुछ है, कल कुछ और अहवाल हों।

दुआ है कभी न मैली हो मेंहदी उसके हाथों की
मेरे दिलबर का हुस्न हमेशा ही बेमिसाल हो।


................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

फ़लक = आसमान
तजकिरा = वार्तालाप
दरयाफ़्तगी = जिग्यासा
अहवाल = हालात


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