Monday, April 23, 2012

{ १३८ } वफ़ा या दगा




ये गम कहाँ हमें आजाद करने वाले हैं
उदासियों को हम आबाद करने वाले हैं।

वफ़ा के नाम पर भी तुम देते रहे दगा
तेरे ये शौक, हम जमाद करने वाले हैं।

हमें पता है तुम्हारे नश्तर गहरे चुभते हैं
तुम्हारे अंदाज हमें बरबाद करने वाले हैं।

जब भी हो तेरे जुल्मों-सितम से रिहाई
सितम की न हम फ़रियाद करने वाले हैं।

कोई और नई सजा ईजाद कर ले जालिम
ये तस्दीक तुमको जल्लाद करने वाले हैं।

तुम हमारे दिल में हो और दिल में रहोगे
तुम्हारी सदा हमको आबाद करने वाले हैं।


-------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल

जमाद = विकसित न होने देना
तस्दीक = साबित करना
सदा = आवाज


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