कोई नही यहाँ पर गुनने वाला
सब बने बहरे कौन सुनने वाला।
किसीका नही यहाँ अता-पता है
सबकी अपनी ही व्यथा-कथा है।
किससे यहाँ मन की बात कहें
क्यों हम ही निराश-उदास रहें।
सब ही हैं अपने ही मे मशगूल
हम भी खिलायें मन के फ़ूल।।
....................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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