Sunday, April 1, 2012

{ १२५ } क्या जीते-जी हम मर जायें





क्या जीते- जी मर जायें...।
पिया बोलो हम क्या कर जायें।।

सावन की घटायें छा गईं
सरशार हवायें आ गईं
सखियाँ मुरादे पा गईं
हम किससे नैन मिलायें।
क्या जीते- जी मर जायें...।
पिया बोलो हम क्या कर जायें।।१।।

सखियों ने डाले हैं झूले
पए जिसको अगिन छू ले
वो सरसों कैसे अब फ़ूले
हम किसको हाल सुनायें।
क्या जीते- जी मर जायें...।
पिया बोलो हम क्या कर जायें।।२।।

सखियों के ताने भी झेलें
कैसे आँख मिचौनी खेलें
सूख गईं मन की बेलें
क्या झूठी ज्योति जगायें।
क्या जीते- जी मर जायें...।
पिया बोलो हम क्या कर जायें।।३।।


.............................. गोपाल कृष्ण शुक्ल

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