खूब कही हैं हमने इश्क और प्यार की गज़लें
कुछ रुसवाई की, कुछ हुस्नो-दीदार की गज़लें।
कुछ में कही माशूक की कसमें कुछ मे रुसवाई
कुछ आई दिल से निकल कर बेजार सी गज़लें।
दिखी है कुछ सुखनों मे ज़िन्दगी बहुत करीब से
हाँ ! कुछ बयाँ हो गईं संसार-ईसार की गज़लें।
कुछ ने दिलाई मुझे जमाने से बहुत ही रुसवाई
दिल का फ़साना भी बयाँकर गईं प्यार की गज़लें।
जाने कैसा मिजाज बना जाने क्या दिल ने कहा
आज बस यूँ ही रख दीं चँद अशआर की गज़लें।
................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
बेजार=अप्रसन्नता
सुखन=गज़ल
ईसार=स्वार्थत्याग
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